Tuesday, December 23, 2008

जिन्हें आज भी नव वर्ष का इंतजार है.

नई उम्मीदें! नया संकल्प! नए विचार! और इसी के साथ शुरू होता है नया वर्ष। जी हाँ कुछ ऐसी ही उम्मीदों के साथ लोगों ने नए वर्ष के आगमन की तैयारियां एक हफ्ते पहले से शुरू कर दी हैं। २००८ में हुई आतंकवादी घटनाओं को भुलाकर २००९ का बांहें फैलाकर स्वागत करने के इंतजार में खड़े हैं। लेकिन इन लोगों से अलग एक वर्ग ऐसा भी है जो आज भी अपने जीवन के नए वर्ष के आगमन की आँखें गडाकर प्रतीक्षा कर रहा है।

कूड़ा बीनते, चाय की दूकान पर काम करते या सड़कों पर भीख मांगते ये वे बच्चे हैं जिन्होंने नए वर्ष का सवेरा अभी तक नहीं देखा है। सुबह अपने-अपने काम पर जाना और शाम को थकहार कर अगले दिन काम की चिंता में सो जाना इनके जीवन की दिनचर्या बन चुकी है। स्कूली शिक्षा से महरूम इन बच्चों को आज भी उस सुबह का इन्तजार है जो इनके जीवन को खुशियों से भर दे। फूटपाथ को चारपाई और आसमान को चादर बनाकर सोने वाले ये बच्चे अपने लिए दो जून की रोटी के लिए इधर-उधर भटकते रहते हैं।

एक तरफ़ जहाँ देश आर्थिक मामलों में दुनिया में अपनी विशेष पहचान बना रहा है वहीं निवाले के लिए तरसते लोगों की संख्या में भी एजी से बढोत्तरी हो रही है। कूड़ा बीनने वाले बच्चे से जब मैंने नए वर्ष के बारे में पूछा तो उसने बताया कि यह नया साल क्या है? इसमे क्या होता है? उस बच्चे के ये जवाब चोंकाने वाले थे। सरकार द्वारा बच्चों को दी जाने वाली मुफ्त प्राथमिक शिक्षा ऐसे बच्चों पर अपने और अपने परिवार की पेट की आग बुझाने में भारी पड़ रही है। आतंकवादी घटनाओं से बेखौफ ऐसे बच्चों की हर सुबह आतंक से ही शुरू होती है। चाहें वह आतंक लोगों द्वारा उन पर लगाई जाने वाली फटकार का हो या किसी सड़क पर बेमौत मारे जाने का हो।

चेहरे पर बेबसी की झलक और आंखों में नयी किरण की उम्मीद लिए इस वर्ग के बच्चों को आज उस सुबह का इंतजार है जो इनके अंधेरे जीवन को रौशनियों से भर दे तभी इनके लिए नया वर्ष शुरू होगा। जिसमें इनके जीवन की सभी खुशियाँ शामिल होंगी और वे उम्मीदे भी होंगी जो की इनके ख्वाबों को पूरा करेंगी।