Sunday, July 7, 2013

बारिश के बीच यादों का बॉक्स

हवा के झौंके से लहराते हुए पत्तों से नजर हटने का नाम नहीं ले रही है। वह शाखा जिसपर वह कोमल कपोल लगी है, कभी नीचे तो कभी ऊपर की ओर हो रही है। आज हवा में कुछ जानी पहचानी सी खुशबू है। काले-काले बादल भी अपनी आवाज से खुद के होने का प्रमाण दे रहे हैं। प्रकृति के इस रूप को घर की बालकनी में खड़े हुए मैं बस यूं ही निहार रहा हूं। अचानक बारिश की बूंदें मेरा ध्यान अपनी ओर खींचती हैं। बारिश की वो बूंदें अपने साथ एक बॉक्स को भी ले आई हैं। वह बॉक्स जिसमें मेरे अतीत से जुड़ा यादों का खजाना भरा हुआ है।

हवा के साथ बारिश की खुशबू भी मेरे अतीत की और याद दिला रही है। अतीत की यादों में मैं उस पर कब बैठ जाता हूं, पता ही नहीं चलता। मेरा वह अतीत जहां मेरी और उसकी कहानियों के चर्चे कॉलेज के कोनों-कोनों में हुआ करते थे। और मैं उन चर्चों को सुन सिर्फ मुस्कुरा देता था और उन सपनों के सच होने का इंतजार करने लगता था।

बाहर बारिश की रफ्तार तेज हो चुकी है। मिट्टी की सौंधी-सौंधी महक मुझे उसके और करीब ले जा रही है। मेरी आंखें अभी भी बंद हैं। हां, वो अब मुझे दिखाई दे रही है। ठीक उसी तरह, जैसी वो पहले थी। वो कभी नजरें मिला रही है, तो कभी नजरें चुरा रही है। उसकी वही शरारतें और अपनी सहेलियों के साथ अठखेलियां मुझे नजर आ रही हैं। बारिश यहां भी हो रही है और वहां भी। दोनों बारिशों के बीच में कोई है, तो वो सिर्फ मैं।
लग रहा है कि शायद वो मुझे बुला रही है। वही यादों के झरोखों से। मेरी आंखें अभी भी बंद हैं। बारिश वहां भी और तेज हो गई है। भीग तो वो पहले ही चुकी थी। बस बाल खोलना बाकी थे। गीला बदन उसके सौंदर्य को और निखार रहा है। पेड़ की आढ़ में छिप-छिप कर उसे देखते हुए मैं भी गीला हो गया हूं। हां, छिप-छिप कर, क्योंकि एकतरफा प्यार ऐसा ही होता है।

बर्तनों की खड़खड़ाती आवाज के बीच आंखें खोल मैं वर्तमान में आ गया हूं। यहां बारिश अभी भी हो रही है। यादों का वह बॉक्स मुझे मेरे सामने नजर आ रहा है। बूंदों की आवाज मुझे बार-बार उसके पास जाने के लिए कह रही है। आसमान को घेरे हुए बादल मुझे घूर रहे हैं। मन में एक सवाल है...। एक नहीं, कई सवाल हैं। क्या वहां भी बारिश हो रही होगी...? क्या वो भी बारिश को निहार रही होगी...? क्या उसके पास भी यादों का बॉक्स आया होगा...? क्या वो भी मेरे बारे में सोच रही होगी...? पता नहीं...।

बालकनी में बैठे-बैठे मैं भी बारिश की फुहारों से भीग सा गया हूं। वर्तमान में सिर्फ भूतकाल को महसूस करने के लिए। उसका साथ महसूस करने के लिए। बादल अपना डेरा दूसरी जगह डालने के लिए रवाना हो चुके हैं। बारिश भी उसके पीछे-पीछे चल चुकी है। मेरे यादों के बॉक्स को बारिश अपने साथ लेकर जा रही है। हालांकि बारिश ने उसमें से यादों का थोड़ा सा खजाना मेरे पास छोड़ दिया है।

बादल अभी भी मुझे घूर रहे हैं। लेकिन बारिश मुस्कुरा रही है। शनै: शनै: समय गुजर रहा है। बादल जा चुके हैं। बारिश जा चुकी है। हवा के साथ बारिश की खुशबू अभी भी मेरी सांसों में है। उसकी यादें अभी भी मेरे साथ हैं। हां यादें। क्योंकि समय गुजर जाने पर बचती हैं, तो सिर्फ यादें...।