Monday, February 20, 2017

वेद प्रकाश शर्मा...सफेद कार पर हाथ रखकर तुम्हारा खड़े होना...वो तस्वीर आज भी जहन में है

          अगर आप 70-80 के दशक में पैदा हुए हैं और नॉवेल पढ़ने का शौक रहा है, तो वेद प्रकाश शर्मा के नाम से वाफिक होंगे। मेरा जन्म 80 के दशक में हुआ और वेद प्रकाश शर्मा को अच्छे से जानता हूं। और उनके प्रसिद्ध उपन्यास ‘वर्दी वाला गुंडा’ को तो बिल्कुल नहीं भूल सकता। हालांकि वो बात अलग है कि अब उसकी स्टोरी याद नहीं है, लेकिन ये श्योर है कि उसे पढ़ने में मुझे करीब एक सप्ताह लग गया था।
          बाद उस दौर की है जब मेरी उम्र 12-13 साल की थी। वेद प्रकाश शर्मा का उपन्यास ‘वर्दी वाला गुंडा’ उस समय नया-नया मार्केट में आया था। इस नॉवेल के लिए लोगों की दीवानगी देखते ही बन रही थी। एक दिन मैं अपने घर के आंगन में परिवार के साथ था। पापा एक किताब लाए। उसमें वेद प्रकाश शर्मा का उनकी शोहरत से संबंधित एक आर्टिकल छपा था। पापा वेद प्रकाश शर्मा की तस्वीर की ओर इशारा कर मुझे दिखाते हुए बोले- राजेश, इन्हें जानते हो?
          मुझे उस समय नहीं पता था कि यह शख्स कौन है। इसलिए मैंने पापा को मना कर दिया। मैंने वो आर्टिकल नहीं पढ़ा था, लेकिन तस्वीर अभी भी जहन में है। उस तस्वीर में वेद प्रकाश शर्मा अपनी सफेद रंग की कार पर हाथ रखकर खड़े हुए थे। उनके चेहरे की मुस्कुराहट उनके आत्मविश्वास को बता रही थी। उस समय नहीं पता था कि लुगदी कागज का यह लेखक आगे चलकर महान नॉवेलिस्ट बनने वाला है। वेद प्रकाश शर्मा के ही एक प्रशंसक मेरी ही कॉलोनी में रहने वाले एक भईया भी थे। मैंने उन्हें वेद प्रकाश शर्मा के नॉवेल किताबों की दुकान पर पढ़ते हुए देखा है।
          यह वो दौर था, जब बुक सेलर किताबों या नॉवेल को बेचते थे या पहचान वाले व्यक्ति को किराए पर देते थे। यदि जान-पहचान नहीं है, तो आपको उसकी ही दुकान पर बैठकर पढ़ना होगा। और जनाब...लुगदी वाले नॉवेल एक दिन में नहीं पढ़े जाते थे, वे नॉवेल समय मांगते थे। उनमें एक क्यूरिसिटी होती थी। एक रोमांच होता था। कैरेक्टर्स के दिमाग में काल्पनिक चित्र बनते थे। शब्दों में लिखा एक्शन फिल्म की तरह दिमाग में चलता था।
          समय गुजरता गया। उम्र भी बढ़ती गई। करीब बीस साल बाद वेद प्रकाश शर्मा फिर से चर्चाओं में थे। लेकिन दुखद समाचार के लिए। वो अब इस दुनिया में नहीं रहे। आपके जाने के बाद आपके बारे में बहुत सारा पढ़ा। सोचा बहुत सारा लिखूं। लेकिन अतीत के झरोखों को याद कर शब्द कम पड़ गए। रह-रहकर तुम्हारी वही कार वाली तस्वीर जहन में और चेहरे की मुस्कुराहट आंखों के सामने आ रही थी। इन बीस सालों में मैंने कई उपन्यास पढ़े। लुगदी वाले उपन्यास समेत आज के दौर के कई लेखकों के बारे में भी पढ़ा। नॉवेल की कहानी पर फिल्में आज भी बनती हैं। लेकिन कोई वेद प्रकाश शर्मा नहीं बन पाया और न ही बन पाएगा।
          अंतिम लाइन...भगवान आपकी आत्मा को शांति दे। आपके उपन्यास आगे भी पढ़े जाएंगे।