Friday, November 10, 2017

एक झक्कास सा लौंडा चाहिए...शादी के लिए


    पहले मैं यहां एक बात क्लियर कर दूं। शादी का सीजन है। इसलिए दिखावे पर मत जाना...अपनी अकल लगाना। हमारे पड़ोस के शर्माजी हैं। सूखे से। जोर से फूंक मार दो तो उड़ जाएं। वो मकर संक्रांति पर पतंग नहीं उड़ाते। एक दिन गिरने से बच गए। बोले- हवा का झोंका तेज था। 


     और उनकी शर्माइन हैं। बिल्कुल माधुरी दीक्षित। हां जी। सई के रियाऊं। माधुरी की बहुत बड़ी फैन हैं। चॉकलेट, लाइमजूस, आइसक्रीम, टॉफियां...वो अभी भी सब खाती हैं। कहती हैं- वक्त बदला है, मैं नहीं। और उस घर में है उनकी सुंदर सी...। रुको। सुंदर सा शब्द सुना नहीं और लार टपकने लगी। सुंदर सी के और भी अर्थ होते हैं जनाब...। वो सुंदर सी है उनके घर की कुतिया। सावधान...! 'कुतिया' शब्द के प्रयोग के लिए पेटा वालों से माफी मांग लेना। अब ये मत पूछना कि पेटा वाले कौन...। गूगल बाबा की मदद ले लो। जवाब के साथ आशीर्वाद भी दे देंगे। ज्ञान का भंडार है उनके पास।
    

    उनके घर एक और सुंदर फीमेल है। हां...। अब सही जा रिएओ मियां। शर्माजी की सुंदर सी बेटी। कुछ सोचने से पहले जनता कृप्या ध्यान दे। दिमाग की बत्ती तीन वाट की एलईडी से ज्यादा जली, तो वो उठाकर पटक देगी। ब्लैक बेल्ट धारी है वो। कराटे में। चों...हेकड़ी निकल गई। निकल गई हेकड़ी। शर्माजी अपनी बेटी की शादी के लिए एक झक्कास का लौंडा ढूंढ़ रहे हैं। पड़ोसियों को भी विज्ञापन वाली खबर दे दी। कुछ रिश्ते आए भी हैं। यकीन नहीं मानोगे। रिश्ते कम, लौंडे ज्यादा आए। झक्कास वाले नहीं।
 

    एक भाई साहब सुबह-सुबह आ गए। कंधे पर बैग टांगे हुए। मेट्रो स्टेशन से सीधे घर पहुंचे। घंटी बजाई। यहां एक बार फिर से सावधान...! यहां अक्षय कुमार नहीं थे, जो बोलते- तुम घंटी बजाओ मैं......। तुम भी खाली जगह छोड़ दो। खबरें पढ़ते होगे तो समझ गए होगे। काम की बात पर आते हैं। घंटी बजते ही अंदर से सुरीली आवाज आई। अहा...! फिर दिमाग की एलईडी जली। सुनो, कुतिया की आवाज आई...। कान-फ्यूज। थोड़ी देर बाद शर्माजी ने दरवाजा खोला। इतनी देर में बेचारा वो व्यक्ति 50 सिगरेट पी गया। गंदी सोच। टोपा हो का...। स्मॉग में बाहर खड़ा था। दिल्ली की प्रदूषित हवा में। समझे मास्टर जी।
 

    शर्माजी ने छोटे से इंट्रोडक्शन के बाद उस बेचारे को अंदर बुला लिया। बातचीत शुरू हुई। बोले इंजीनियर हैं। सुबह जाते हैं। रात को आते हैं। शर्माजी ने पूछ लिया। इतने टाइम करते क्या हो? इंजीनियर साहब बोले- मीटिंग, काम कम काम की बातें ज्यादा, काम की फिक्र ज्यादा, जो काम करता है उसके ऊंगली करना और जो नहीं करता है उसकी बॉस से शिकायत करना...। घर में सन्नाटा छा गया।
 

    शर्माजी हैरान परेशान। सोचने लगे कैसा लौंडा है ये। इससे तो इंदौर वाला ही ठीक था। पोहे-जलेबी बेचता था। जीरावन डाल के। अच्छा-खासा कमा लेता था। सुबह-सुबह ग्राहकों की लाइन लगी रहती थी। पांच-छह घंटे के काम के बाद आराम से घर पर। फिर मौज करो या मस्ती। मेरी बेटी भी उसके साथ खुश रहती। तभी इंजीनियर साहब का मोबाइल बज गया। हम तुम्हे चाहते हैं ऐसे...। यह मोबाइल की रिंगटोन थी। नजर उनकी बेटी पर पड़ी। थोड़ से मुस्कुराए। बेचारी शर्माजी की बेटी का बुरा हाल था। बहुत देर से सहन कर रही थी। इंजीनियर साहब मोबाइल उठा पाते, उससे पहले ही सुंदर सी बेटी उखड़ गई। बोली- उठ...। खड़ा हो...। भाग जा यहां से। मुझे नहीं करनी तुझ जैसे लौंडे के साथ शादी। मैं हैप्पी हूं और हैप्पी भाग जाएगी।

Monday, February 20, 2017

वेद प्रकाश शर्मा...सफेद कार पर हाथ रखकर तुम्हारा खड़े होना...वो तस्वीर आज भी जहन में है

          अगर आप 70-80 के दशक में पैदा हुए हैं और नॉवेल पढ़ने का शौक रहा है, तो वेद प्रकाश शर्मा के नाम से वाफिक होंगे। मेरा जन्म 80 के दशक में हुआ और वेद प्रकाश शर्मा को अच्छे से जानता हूं। और उनके प्रसिद्ध उपन्यास ‘वर्दी वाला गुंडा’ को तो बिल्कुल नहीं भूल सकता। हालांकि वो बात अलग है कि अब उसकी स्टोरी याद नहीं है, लेकिन ये श्योर है कि उसे पढ़ने में मुझे करीब एक सप्ताह लग गया था।
          बाद उस दौर की है जब मेरी उम्र 12-13 साल की थी। वेद प्रकाश शर्मा का उपन्यास ‘वर्दी वाला गुंडा’ उस समय नया-नया मार्केट में आया था। इस नॉवेल के लिए लोगों की दीवानगी देखते ही बन रही थी। एक दिन मैं अपने घर के आंगन में परिवार के साथ था। पापा एक किताब लाए। उसमें वेद प्रकाश शर्मा का उनकी शोहरत से संबंधित एक आर्टिकल छपा था। पापा वेद प्रकाश शर्मा की तस्वीर की ओर इशारा कर मुझे दिखाते हुए बोले- राजेश, इन्हें जानते हो?
          मुझे उस समय नहीं पता था कि यह शख्स कौन है। इसलिए मैंने पापा को मना कर दिया। मैंने वो आर्टिकल नहीं पढ़ा था, लेकिन तस्वीर अभी भी जहन में है। उस तस्वीर में वेद प्रकाश शर्मा अपनी सफेद रंग की कार पर हाथ रखकर खड़े हुए थे। उनके चेहरे की मुस्कुराहट उनके आत्मविश्वास को बता रही थी। उस समय नहीं पता था कि लुगदी कागज का यह लेखक आगे चलकर महान नॉवेलिस्ट बनने वाला है। वेद प्रकाश शर्मा के ही एक प्रशंसक मेरी ही कॉलोनी में रहने वाले एक भईया भी थे। मैंने उन्हें वेद प्रकाश शर्मा के नॉवेल किताबों की दुकान पर पढ़ते हुए देखा है।
          यह वो दौर था, जब बुक सेलर किताबों या नॉवेल को बेचते थे या पहचान वाले व्यक्ति को किराए पर देते थे। यदि जान-पहचान नहीं है, तो आपको उसकी ही दुकान पर बैठकर पढ़ना होगा। और जनाब...लुगदी वाले नॉवेल एक दिन में नहीं पढ़े जाते थे, वे नॉवेल समय मांगते थे। उनमें एक क्यूरिसिटी होती थी। एक रोमांच होता था। कैरेक्टर्स के दिमाग में काल्पनिक चित्र बनते थे। शब्दों में लिखा एक्शन फिल्म की तरह दिमाग में चलता था।
          समय गुजरता गया। उम्र भी बढ़ती गई। करीब बीस साल बाद वेद प्रकाश शर्मा फिर से चर्चाओं में थे। लेकिन दुखद समाचार के लिए। वो अब इस दुनिया में नहीं रहे। आपके जाने के बाद आपके बारे में बहुत सारा पढ़ा। सोचा बहुत सारा लिखूं। लेकिन अतीत के झरोखों को याद कर शब्द कम पड़ गए। रह-रहकर तुम्हारी वही कार वाली तस्वीर जहन में और चेहरे की मुस्कुराहट आंखों के सामने आ रही थी। इन बीस सालों में मैंने कई उपन्यास पढ़े। लुगदी वाले उपन्यास समेत आज के दौर के कई लेखकों के बारे में भी पढ़ा। नॉवेल की कहानी पर फिल्में आज भी बनती हैं। लेकिन कोई वेद प्रकाश शर्मा नहीं बन पाया और न ही बन पाएगा।
          अंतिम लाइन...भगवान आपकी आत्मा को शांति दे। आपके उपन्यास आगे भी पढ़े जाएंगे।