Sunday, December 6, 2009

आंखों में दिखा त्रासदी का ग़म

दीपावली की छुट्टियाँ ख़त्म करके वापस भोपाल जाने के लिए मैं नई दिल्ली के निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर बैठा हुआ था। मेरा भोपाल एक्सप्रेस ट्रेन में रिजर्वेशन था। स्टेशन पर मैं शाम छः बजे ही पहुँच गया था, जबकि ट्रेन का समय नौ बजे का था। स्टेशन पर बैठा हुआ मैं अपने मोबाइल पर गाने सुन रहा था। करीब एक घंटे बाद कुछ लोग भी मेरे पास ही आकर बैठ गए। उनसे बात करने पर पता चला कि उन्हें भी भोपाल एक्सप्रेस से भोपाल जाना था। वो दिल्ली में किसी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आए थे।

बातों-बातों में मैंने उनसे तीन दिसंबर १९८४ को भोपाल में हुई गैस त्रासदी के बारे में पूछना शुरू कर दिया। जिस व्यक्ति से मैं बातें कर रहा था उसकी उम्र करीब ५० साल की थी। जब उसने मुझे उस रात के बारे में बताना शुरू किया तो लगा कि वो रात किस प्रकार क़यामत की रात बनकर आई होगी। जब वह व्यक्ति मुझे उस त्रासदी के बारे में बता रहा था, तब उसकी आंखों में मुझे त्रासदी का ग़म साफ़ दिखाई दे रहा था। उस त्रासदी के बारे में बताते-बताते एक समय ऐसा भी आया जब उसकी आँखें नम हो गई थीं। एक पल के लिए मुझे लगा कि शायद यह व्यक्ति उस हादसे में किसी अपने को खो चुका है, लेकिन मैं ग़लत था।

दो घंटे तक उस व्यक्ति ने मुझे गैस त्रासदी कि इतनी बातें बता दीं थी कि मेरी आँखें भी नम हो गईं थीं। दो घंटे का समय कब बीत गया मुझे पता भी न चला। कुछ समय बाद मेरी ट्रेन प्लेटफ़ॉर्म पर आ गई थी। मैं ट्रेन में बैठ गया। दिल्ली से भोपाल तक शुरू के करीब दो-तीन घंटे तक मैं उस व्यक्ति और गैस त्रासदी के बारे में सोचता रहा।

तीन दिसंबर २००९ को इस गैस त्रासदी के २५ साल पूरे हो चुके थे। इस दिन मैं भोपाल में ही था। मुझे महसूस होने लगा था कि इस त्रासदी से यहाँ के लोगों में कितना गम है। दैनिक भास्कर में कम करते हुए तब मैंने यहाँ के कुछ लोगों से इस बारे में पूछा तो उन लोगों ने उस काली रात का पूरा सच मेरे सामने रख दिया। इस दिन जिस प्रकार लोगों ने आँखों में आंसू लेकर सड़कों पर अपनी नाराज़गी दिखाई, वो जायज़ थी। मैं भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि ऐसी काली रात किसी के भी जीवन में दोबारा न आए.