Sunday, January 4, 2009

जूते-जूते का फर्क

जब कभी हम छोटे-छोटे बच्चों को लड़ते देखते हैं तो उस लड़ाई में कभी-कभी बच्चों द्वारा एक दूसरे पर जूता फेंकते हुए भी देख लेते हैं। जूता फेंकते वक्त वे बच्चे उस जूते की अहमियत भूल जाते हैं। वे भूल जाते हैं कि वे जूते किस कम्पनी के हैं? शायद तुर्की की बेदान शू-कम्पनी के तो नहीं। और यदि हों भी तो उन बच्चों पर क्या फर्क पड़ता है। लेकिन इराकी पत्रकार मुंतजर अल जैदी द्वारा मॉडल नम्बर २७१ के इस कम्पनी के जूते ने पूरी दुनिया में हल्ला रखा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति बुश पर फैंके गए इस जूते से वो फर्क आ गया है जो बच्चों ने कभी अपनी लड़ाई में एक-दूसरे पर फैंके थे। खैर, वो तो बच्चें हैं लेकिन जैदी तो नहीं! वह उससे क्या सिद्ध करना चाहते थे? कहीं यह तो नहीं कि कम्पनी का यह जूता कितना मजबूत है? उनकी इस टेस्टिंग में वे जूते इतने मजबूत निकले कि शू-कम्पनी के मालिक रमजान बेदान को अपनी कम्पनी में १०० अतिरिक्त कर्मचारी रखने पड़े। आख़िर मॉडल नम्बर २७१ के उस जूते की जो बुश पर फैंका गया था मांग जो बढ़ गई। लेकिन बच्चों के जूते बनाने वाली कम्पनी पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। यह तो जूते-जूते का फर्क है। इसी बात पर मैंने अपने एक दोस्त से हँसते हुए पूछा,"यार क्या तेरा जूता बेदान कम्पनी का है?" तो उसने भी हँसते हुए जबाव दिया,"क्या अमेरिकी राष्ट्रपति बुश अपने देश में आ रहें है?" उसका यह जबाव सुनते ही मैं चौंक गया। फिरउसने अपने जबाव को स्पष्ट करते हुए बताया कि मैं तो सिर्फ़ यह देखना चाहता हूँ कि बुश के आने पर होने वाली प्रेस वार्ता या किसी मीटिंग में कितने लोग जूते पहन कर आते हैं? उसकी यह बात सुन कर मैं मन ही मन मुस्कुराया।
खैर जो भी हो मुंतजर अल जैदी द्वारा बुश पर फैंका गया जूता ऐसे चला कि पूरी दुनिया में राजनीतिक और मीडिया सड़कों पर ट्रैफिक लग गया। जूते कि महिमा जो निकली। कुछ भी हो जूता तो होता ही चलने के लिए है। पैरों में पहनो तो भी चलता है और हाथ में ले लो तो भी। यही नहीं आजकल तो राजनेता भी अपनी राजनीति चलाने के लिए भी जूतों का सहारा लेते हैं। जैसे बसपा प्रमुख मायावती ने लिया था," तिलक,तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार।" यही नहीं राजनीतिक पार्टियों कि सभाओं के दौरान तो कभी-कभी जूता ऐसे चलता है कि जैसे मानो इसका समझौता राजधानी एक्सप्रैस से हो गया हो। ताबड़-तोड़ जूतों की लड़ाई होती है लेकिन वे जूते किस्मत के मारे होते हैं जिन्हें जैदी के जूतों के बराबर प्रसिद्धि नहीं मिलती।

No comments: