Wednesday, August 6, 2014

अलविदा प्राण साहब...दिल में रहेंगे चाचा चौधरी और साबू

आंखें भर आने का राज किसी को नहीं पता था। आॅफिस में साथियों की बातें सिर्फ सुन रहा था। दिमाग में कार्टूनिस्ट प्राण साहब के बनाए हुए किरदार चाचा चौधरी, साबू, बिल्लू, पिंकी, रॉकेट आदि चल रहे थे। नजर सामने रखे कंप्यूटर पर थी। वह कंप्यूटर, जिसके बारे में आज से करीब 20 साल पहले प्राण साहब की ही कॉमिक्सों में सुना था। प्राण साहब की उन कॉमिक्सों के बीच कहीं लिखा होता था, ‘चाचा चौधरी का दिमाग कंप्यूटर से भी तेज चलता है।’ उस समय नहीं पता था कि कंप्यूटर किस बला का नाम है। बच्चा बुद्धि यही सोचती थी कि शायद फर्राटे मारने वाली कोई कार होगी। आज उसी कंप्यूटर के सामने प्राण साहब के निधन की खबर पढ़कर दिल भर आया।

प्राण साहब, पिछली बार आपकी कॉमिक्स कब पढ़ी थी, यह तो याद नहीं, लेकिन इंटरनेट और सोशल नेटवर्किंग की दुनिया में आपका जिक्र अक्सर हो जाता है। बचपन में जब कभी अखबार में ज्वालामुखी के फटने की खबर पढ़ते थे, तो लगता था कि साबू को गुस्सा आ गया है। बारिश के मौसम में जब साबू चाचा चौधरी को कंधे पर बिठाकर ले जाता था, तो उस समय चाचा चौधरी बादलों के ऊपर होते थे और बारिश उनके नीचे। अपने बचपन की टोली में कई बार इस बात का भी जिक्र छेड़ देते थे कि एक दिन हम भी साबू के कंधों पर बैठेंगे।

आज जब भी मंगल ग्रह या ज्यूपिटर से संबंधित कोई खबर पढ़ता हूं, तो लगता है कि वहां साबू होगा। यह जानते हुए भी कि आज बचपन की उस नादान उम्र से काफी आगे निकल आया हूं। लेकिन सोचता हूं...क्या हुआ, बचपन को याद तो किया जा सकता है।

स्कूल और घर में अक्सर लोग पढ़ाकू समझते थे। लेकिन हम कितने पढ़ाकू थे, यह बस हम ही जानते थे। स्कूल की किताबों के बीच में रखी चाचा चौधरी, बिल्लू, पिंकी आदि की कॉमिक्सों को पढ़कर हमारा मुस्कुराना और हंसना हमारे लिए सबसे बड़ी दौलत हुआ करती थी। 50 पैसे में सुबह से लेकर शाम तक और एक रुपए में पूरे दिन के लिए आपकी कॉमिक्स किराए पर लाते थे। आपकी उन कॉमिक्सों को रखने की जगह हमारा स्कूल का बस्ता होता था। रात को उसमें कोई कॉमिक्स नहीं रखते थे। डर रहता था कि कहीं मम्मी ने देख ली, तो फिर हमारी खेर नहीं।

प्राण साहब, आपके इस दुनिया से जाने के बाद अब चाचा चौधरी का दिमाग कंप्यूटर से तेज नहीं चलेगा, साबू को गुस्सा नहीं आएगा, राका फिर से जिंदा नहीं होगा। प्राण साहब, हमारे बचपन को नई खुशी देने और उसे और मनोरंजक बनाने के लिए शुक्रिया शब्द बहुत छोटा है। आप हमारे दिल में थे, दिल में हो और दिल में रहोगे।

...अलविदा प्राण साहब।

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