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Sunday, March 1, 2009

एक दबी कसक

ये दिल तेरी चाहत का आसरा चाहता है
तेरी मोहब्बत में डूब जाने को चाहता है,
तू मुझे चाहे एक दिन ऐसा भी आए
की तेरी बाहों में मर जाने को जी चाहता है।

तेरे दीदार को को तरसती हैं आँखें मेरी
तुझे छूने को जी चाहता है,
दबी है एक कसक मेरे दिल में
उसे बयां करने को जी चाहता है।

मैंने तो लिख दी है अपनी जिंदगी नाम तेरे
ये दिल तेरी एक हाँ का तलबगार चाहता है,
की मर कर भी जिंदा रहूँ तेरी वफाओं में
बस तुझे पाने को जी चाहता है।
ये दिल तेरी चाहत का आसरा चाहता है.....

Tuesday, January 6, 2009

कविता

समीर
वो लहराती पेड़ों पर
मचलती खलिहानों में
पूछता उससे
बता तेरा बसेरा कहाँ है?
नित्य आती मेरे पास
निर्जन में
पूछता उससे
बता तेरी डगर क्या है?
मैं अनायास ही उससे कहता
तुम्हारा वरण गान
मधु पूरित है
और तुम्हारा कोमल तन
विश्वस्रज है
तुम्हारा क्षितिज बदन
निशा शयन में
कल्पना की गहराई में
शत-शत गंध वाला होता है
जिसमे मुझे विश्व-वंदन-सार नजर आता है
हे नाम-शोभन समीर
अब तुम बताओ मुझे
उर्ध्व नभ-नग में
तुम्हारा निर्गमन द्वार कहाँ है?
तुम अतुल हो
तुम श्री पावन हो
हे सरोज-दाम
तुम ज्योति सर हो
मेरे चिन्त्य नयनों में
ख्यालों के स्वपन दिखाने वाली
हे रत्न चेतन, हे तापप्रशमन
ह्र्यदय स्पर्शक समीर
अब तो बता दो
तुम्हारा बसेरा कहाँ है?
तुम्हारा बसेरा कहाँ है?