सोच रहा था कि २६ जनवरी को गणतंत्र के ६० वर्ष पूरे होने पर कुछ लिखुंगा। लेकिन समय न मिल पाने के कारण नहीं लिखा पाया। इस दौरान मैंने गणतंत्र के बारे में अख़बारों में काफी कुछ पढ़ा। जितने लेख मैंने पढ़े उसमें से लगभग ९० फीसदी में सिर्फ संविधान के बारे में नकारात्मक बातों के अलावा और कुछ नहीं था। कोई संविधान को कोस रहा था, तो कोई सरकार को। इन लिखने वालों को कोई यह बताए कि क्या ये संविधान का पालन करते हैं? क्या इन्होंने संविधान को पढ़ा है? क्या ये संविधान में लिखे पहले तीन शब्दों का पालन करते हैं? खैर, ये तो लिखने वाले हैं। हम सारा दोष इन्हें ही क्यों दें। ज़रा उनसे भी जाकर पूछें जो संविधान के बारे में बिना कुछ जाने ही उसे देश में फैल रही अराजकता का दोषी ठहराते हैं।
अगर मैं कहूं कि मैंने संविधान को पढ़ा है, तो यह गलत होगा। लेकिन इसके बारे में जितना कुछ पढ़ा है उससे मैं कह सकता हूँ कि मुझे अपने देश के संविधान पर गर्व है। वह संविधान जिसका पूरी दुनिया लोहा मानती है। संविधान में लिखे पहले तीन शब्द "वी, द पीपुल" जिसका हिंदी में अर्थ है "हम लोग"। अब ज़रा इन शब्दों पर गौर करें, क्या अपने देश में इन तीन शब्दों का पालन होता है? शायद नहीं। मैं अपने उन बंधुओं से भी पूछना चाहता हूँ जिन्होंने अख़बारों में संविधान के बारे में नकारात्मक बातें लिखी हैं, क्या वे पूरा संविधान तो छोड़ो इन तीन शब्दों का पालन करते हैं? ज़रा सोचिए, जब कोई एक साधारण व्यक्ति किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति से मिलने जाता है, तो उनकी उस व्यक्ति के प्रति क्या प्रतिक्रिया होती है? साथ ही मैं अपने देश के उन नेताओं से भी पूछना चाहता हूँ, जो संविधान को बदलने की हिमाकत तो करते हैं, लेकिन इस बात की क्या गारंटी है कि संविधान बदलने के बाद वे नए संविधान का पालन करेंगे?
संविधान समिति के सदस्यों में से एक डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने कहा था कि कोई भी संविधान चाहें कितना भी अच्छा लिखा जाए, यदि उस देश की जनता उसका सही ढंग से पालन नहीं करेगी तो वह ख़राब हो जाएगा। और यदि संविधान कितना भी बुरा लिखा जाए, अगर उस देश की जनता उसका सही तरीके से पालन करे तो वह भी अच्छा हो जाता है। अब ज़रा सोचें कि आप चाय की दुकान पर चाय पी रहे हों और आपके पास फटे-गंदे कपड़ों में कोई बच्चा आकर खड़ा हो जाए, तो आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी? मुझे लगता है कि तब आप संविधान के पहले तीन शब्दों का भी पालन नहीं कर पाओगे। और यहीं से शुरू होता है संविधान का पालन। संविधान बनने से लेकर अब तक इसमें न जाने कितने सुधार हो चुके हैं, लेकिन पालन...?
हम देशवासियों की एक आदत है। हमारे पास जो होता है हम उस पर सब्र न करके उससे आगे की चाह रखते हैं। इसमें कोई बुराई भी नहीं है, लेकिन बुराई इस बात में है कि जो हमारे पास है हम उसका प्रयोग नहीं करते और यदि करते भी हैं तो सही ढंग से नहीं। ज़्यादा बातें न लिखते हुए मैं सिर्फ यही कहना चाहूँगा कि सबसे पहले हम संविधान के पहले तीन शब्दों का पालन करें उसके बाद पूरे संविधान का। संविधान को दोष देने से कुछ हासिल नहीं होगा। यदि कुछ बदलना है तो पहले अपने-आप को बदलो। फिर देखना ये सारी दुनिया खुद-ब-खुद बदल जाएगी।
1 comment:
सही कहा आपने. मै आपकी बातो से सहमत हूँ.संविधान में सब कुछ है ,बस जरुरत है तो उसका पालन करने की .
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