Saturday, February 6, 2010

इस वायरस का एंटी वायरस कब आएगा?


जब इन्टरनेट भारत में नया-नया आया था, तो लोगों को पता तक नहीं था कि वायरस नाम की कोई चीज कम्प्यूटर को अपना शिकार बना सकती है। खैर, कुछ समय बाद इसकी काट निकाल ली गई और इस वायरस से निपटने के लिए तरह-तरह के एंटी वायरस बाज़ार में आ गए। कम्प्यूटर को तो लोगों ने बचा लिया, लेकिन अपने देश में घुस आए क्षेत्रीयवाद के वायरस से बचने के लिए एंटी वायरस का देश की जनता को अभी तक इंतजार है।

मराठा मानुष नाम का यह वायरस देश में इस तरह अपना घर बना चुका है कि इससे निपटने के लिए सरकार ने भी अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। केवल बातों के जरिए ही इस वायरस को ख़त्म करने के हवाई किले बनाए जा रहे हैं। महाराष्ट्र में घुसे इस वायरस ने अपना आतंक इस कदर फैला रखा है कि आम आदमी तो दूर, इससे निपटने के लिए राज्य और केंद्र सरकार भी असहाय नज़र आ रही हैं। 80 के दशक में जब शिव सेना ने मराठी मानुष का राग अलापना शुरू किया था, तभी लोगों को लगने लगा था कि कहीं ऐसा न हो कि आगे चलकर यह राग एक भयंकर रूप ले ले। आज तीन दशक बाद लोगों की समझ में आ गया है कि राजनीतिक खिचड़ी पकाने के लिए राजनेता क्षेत्रीयवाद की आग को भड़का रहे है हैं। चाहें महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के राज ठाकरे हों या शिव सेना के बाल ठाकरे, दोनों ही समय-समय पर महाराष्ट्र के मराठियों के लिए नए-नए फरमान जारी करते रहते हैं। कभी वे टैक्सी चालकों का मराठी होना ज़रूरी बताते हैं तो कभी वहां की सरकारी नौकरियों पर मराठियों का हक़ होना। यही नहीं ये उत्तर भारतीयों को महाराष्ट्र के विकास में बाधा बताते हुए उन्हें मारते-पीटते रहते हैं। साथ ही उत्तर भारतीयों का हिंदी भाषी होने के कारण इन्हें तरह-तरह की यातनाएं भी दी जाती हैं।

यहां ठाकरे परिवार यह भूल जाता है कि महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई को आर्थिक राजधानी और फिल्म सिटी का दर्जा दिलाने में उत्तर भारतीयों का काफी सहयोग रहा है। एक तरफ जहां शिव सेना और मनसे ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों पर हो रहे नस्लीय हमले की विवेचना करते हैं, तो वहीं दूसरी तरफ अपने ही देश में उत्तर भारतीयों पर हमले करके अपना सीना चौड़ा कर बिंदास घूमते हैं। इन्हें लगता है कि सरकार इन्हीं की है। और हो भी सकता है। जिस प्रकार से इन पर कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की जाती, उसे देखकर तो यही लगता है। महाराष्ट्र में इन दोनों पार्टियों के कार्यकर्ता सड़कों पर खुलेआम आतंक फैलाते हैं और सरकार हाथ पर हाथ धरे तमाशा देखती रहती है।

यदि हम महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों में दोनों पार्टियों की स्थिति पर नज़र डालें तो शिव सेना के खाते में जहां 45 सीटें हैं, वहीं मनसे के पास मात्र 13 सीटें हैं। पिछले वर्ष हुए लोकसभा चुनावों में महाराष्ट्र की 48 सीटों में से शिव सेना को मात्र 11 सीटें मिलीं, जबकि मनसे का खाता तक नहीं खुल पाया। यहां गौर करने वाली बात है कि मात्र मुट्ठी भर सीट होने पर ये दोनों पार्टियां इस कदर ग़दर मचाती हैं, तो सोचिए अगर केंद्र की लगाम इनके हाथ में हो तो क्या हो सकता है! डर लगता है यह सोचकर कि कहीं भारत महाराष्ट्र न बन जाए। अब समय आ गया है कि क्षेत्रीयवाद की आग फ़ैलाने वाले कोई भी हों, उन्हें कड़ा सबक मिलना चाहिए। साथ ही देश में एक नहीं ऐसे अनेक एंटी वायरस आने चाहिए जो क्षेत्रीयवाद के वायरस को नष्ट कर अमन-चैन फैला सकें, क्योंकि अनेकता में एकता ही अपने देश की पहचान है।

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