छः दशक के लम्बे इंतजार के बाद अयोद्धया मसले पर आया फैसला सुकून देने वाला है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच द्वारा दिए गए फैसले से लगभग सभी राजनैतिक दल संतुष्ट नज़र आए। लेकिन फैसले के दो दिन बाद ही समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख मुलायम सिंह यादव अपनी जुबान खोल बैठे। वह भी ऐसे समय जब फैसले पर दो मुख्य पार्टियां भाजपा और कांग्रेस फैसले से खुश नज़र आ रही हैं। 1990 में अपनी रथ यात्रा से हिन्दुओं में राम भक्ति का अलख जगाने वाले भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी भी अब फैसला आने के बाद उसकी तारीफ करते नहीं थक रहे। यही नहीं फैसले के बाद किसी भी प्रकार की अनहोनी की जो आशंका लगाई जा रही थी वह भी गलत साबित हुई। इससे पता चलता है कि देश की जनता अब अपनी ज़िम्मेदारी के प्रति काफी सजग हो गई है। वह समझ गई है कि कोई भी सज्जन व्यक्ति चाहें वह किसी भी धर्म का हो उसे आज अपने कामों से फुरसत नहीं है। हां, इतना ज़रूर है कि असामाजिक तत्व ज़रूर शांति में खलल डालने की कोशिश कर सकते हैं।
अब से करीब 18 साल पहले 1992 को बाबरी मस्जिद ढहने के बाद जो हिंसा हुई थी, उसकी चिंगारी राजनीति से ही प्रेरित थी और उसके बाद पूरे देश में इस चिंगारी ने आग का रूप धारण कर लिया था। उस समय मैं बहुत ही छोटा था, लेकिन उस आग में देश किस प्रकार जल रहा था यह मुझे अच्छी तरह याद है। मेरे पापा भी पत्रकार हैं और उस समय कर्फ्यू के दौरान उन्हें रिपोर्टिंग के लिए कर्फ्यू पास मिला हुआ था। उस समय पापा की रिपोर्टिंग की फाइल आज भी मौजूद है। एक बार वो फाइल मेरे हाथ लग गई थी। पापा की वो ख़बरें जो अखबार में छपी थीं, उन्हें पढ़कर एक भयावह द्रश्य मेरी आंखों के सामने आ गया था। जब कोर्ट का फैसला आया तो मैं भगवान से यही प्रार्थना कर रहा था कि 1992 फिर से न दोहराया जाए। आख़िरकार फैसला आने के बाद सब कुछ सही सलामत निपट गया। हां, इतना ज़रूर है कि विवादित ज़मीन को तीन हिस्सों में बांटने के फैसले से कुछ लोग ज़रूर नाराज़ हैं, लेकिन ख़ुशी की बात यह है कि उनमें बदले की भावना कहीं दिखाई नहीं दे रही। वैसे भी जो पक्ष इस फैसले से खुश नहीं हैं उनके पास सुप्रीम कोर्ट में जाने का रास्ता खुला हुआ है।
मेरी समझ में नहीं आ रहा कि मुलायम सिंह को इस फैसले से क्यों निराशा हुई है? आखिर मुलायम सिंह ने क्यों कहा कि फैसले से मुसलमान खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं? जब कि किसी भी मुसलिम दल ने इस प्रकार की कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी। आखिर मुलायम सिंह को क्यों ऐसा लगा कि न्यायपालिका ने यह फैसला आस्था को कानून और सबूतों को ऊपर रखकर दिया है? मुलायम सिंह को ऐसा क्यों लग रहा है कि इस फैसले के बाद आगे चलकर अनेक संकट पैदा होंगे? मुलायम सिंह मुसलमानों के प्रति इतने मुलायम कब से हो गए कि उन्होंने कह दिया कि फैसले से पूरे मुसलिम समुदाय में मायूसी है?
पिछले वर्ष मई में मुलायम सिंह के सहयोगी रहे आज़म खान को खुद मुलायम ने पार्टी से छः साल के लिए निकाल दिया। इस पर मुलायम सिंह का तर्क था कि आज़म पार्टी विरोधी काम कर रहे थे। आज़म को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा उन्होंने भाजपा के पूर्व नेता कल्याण सिंह को अपनी पार्टी में शामिल करने का मन बना लिया। पार्टी के सम्मेलनों में मुलायम सिंह कल्याण सिंह को अपने साथ ले जाने लगे। क्या मुलायम सिंह यहां यह भूल गए थे कि बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री थे और तब से लेकर अब तक वे मुस्लिमों के निशाने पर हैं। जहां एक तरफ मुलायम सिंह आज़म खान को बाहर कर काफी मुस्लिमों के बुरे बन गए थे, वहीं कल्याण से दोस्ती ने आग में घी का काम कर दिया। मुलायम सिंह के इस रवैये से मुसलिम इतने खफा हुए कि उन्होंने धीरे-धीरे पार्टी से किनारा करना शुरू कर दिया। आखिरकार सपा प्रमुख को अपनी गलती का अहसास हुआ और कल्याण से कन्नी काट ली।
पिछली इन बातों को ध्यान में रख हो सकता है कि वो मुस्लिमों के हितैषी बनने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन उनकी भाषा बदली हुई है। मुलायम सिंह की फैसले पर प्रतिक्रिया के बाद उनकी निंदा मुस्लिमों ने भी ज़ोरदार तरीके से की है। ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल ला बोर्ड के सदस्य और ईदगाह के नायब इमाम मौलाना रशीद फिरंगी महली ने मुलायम सिंह की प्रतिक्रिया के बाद कहा कि पूरे देश में दोनों समुदाय के के धार्मिक नेताओं, राजनेताओं और मीडिया ने इस संवेदनशील मुद्दे पर अपनी ज़िम्मेदारी और संयम का परिचय दिया है। किसी को भी ऐसी टिप्पणी नहीं करनी चाहिए जो राजनीति से प्रेरित लगती हो और जिससे सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ने की आशंका हो। वहीं शिया मुसलिम पर्सनल ला बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना मोहम्मद मिर्ज़ा अतहर ने मुलायम सिंह के बयान पर आश्चर्य जताया।
मुसलिम-यादव (माई) का फ़ॉर्मूला आजमाने वाले मुलायम सिंह को ऐसे बयान राजनीति में शोभा नहीं देते। मुसलिम समुदाय की ओर से आए इन बयानों के बाद अब मुलायम सिंह को समझ में आ जाना चाहिए कि आज का भारत अब काफी बदल चुका है। साथ ही राजनेताओं को भी फैसले पर अब ऐसी किसी भी प्रकार की टिप्पणी से बचना चाहिए जिससे सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ने की आशंका हो।
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