Sunday, March 1, 2009

मेरी नव वर्ष की वो सुबह

प्रतीक्षा की रात की कशमकश, मत पूछ कैसे सुबह हुई
कभी एक चिराग जला दिया, कभी एक चिराग बुझा दिया

वैसे तो जिंदगी का हर दिन महत्वपूर्ण होता है लेकिन उस जिंदगी में कोई दिन या पल ऐसा भी होता है जो यादगार बन जाता है। ऐसे ही मेरे महत्वपूर्ण पलों में से एक पल था २००४ की नव वर्ष की सुबह का पल। ३१ दिसम्बर, २००३ की रात मैं सही ढंग से सो नहीं पाया था। इंतजार था अगली सुबह का। उस सुबह का जो मेरी जिंदगी को बदलने जा रही थी। उस समय मैं बी.एससी फर्स्ट ईअर का छात्र था। उस दिन सुबह मेरे ट्यूशन में न्यू ईयर की पार्टी थी। सुबह मैं जल्दी उठा और तैयार होकर पार्टी में गया।

ट्यूशन की पार्टी में पहुँचते ही मेरी नज़रों ने किसी को तलाश करना शुरू किया। तलाश उस लड़की की जिससे मिलने के लिए पार्टी एक बहाना थी। वैसे तो वह मेरे साथ मेरे ट्यूशन में ही पढ़ती थी। हम रोज़ मिल भी लिया करते थे। लेकिन बातें आंखों ही आंखों में होती थीं। आज मैं उसे न्यू ईअर की बधाई के बहाने मिलने जा रहा था। आखिरकार मेरी तलाश ख़त्म हुई। वह लड़की उस पार्टी में आई। उसके आते ही मेरे दिल की धड़कन तेजी से बढ़ने लगीं। पार्टी में मैंने उसे बधाई देने की लाख कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो सका।

पार्टी करीब दो घंटे तक चली। जब पार्टी ख़त्म हुई तो वह घर जाने लगी। वह अपने घर मेरे घर के रास्ते से होकर ही जाती थी। मैं भी उसके साथ चल दिया। उसको देखकर मुझे ना जाने क्या हो जाता था? मेरे दोस्त मुझे बताते थे कि मुझे प्यार हो गया है। क्या प्यार ऐसा ही होता है मुझे नहीं पता था। खैर जब वो लड़की जाने लगी तो रास्ते में मैंने उसे न्यू ईअर की बधाई दे ही डाली। लेकिन मुलाकात फ़िर न हो सकी। वह मेरी बधाई को लेकर मुस्कुराकर चली गई। और मैं भी अपने होंठों पर हल्की मुस्कुराहट लिए घर आ गया।

पॉँच साल बाद भी मैं उस सुबह का इंतजार कर रहा हूँ। आज वो लड़की जिससे शायद मैं मोहब्बत कर बैठा था मेरे साथ नहीं है लेकिन वह लड़की मुझे मोहब्बत करना सिखा गई। इस मोहब्बत बारे में मैं सिर्फ़ यही कहना चाहता हूँ--

मोहब्बत की तस्वीर को बहुत पास से देखा है मैंने ।
मत पूछो होती है कैसी बस उसे छूकर नहीं देखा है मैंने॥

1 comment:

leftover said...

very nice... keep it up...