प्रियतमे,
जानता हूं, तुम कुछ नाराज़ हो। और तुम्हारी नाराज़गी भी जायज़ है। आखिर मैंने तुम्हें अभी तक कोई पत्र जो नहीं लिखा। हां, इतना है कि ख्वाबों के पन्नों पर दिल की स्याही से कुछ शब्द ज़रूर लिखे हैं। वे शब्द जो अनदिखे हैं। वे शब्द जो कभी जुबां से बयां नहीं हुए। वे शब्द जो अपने सच होने का इंतजार कर रहे हैं। जानता हूं, तुम मुझसे दूर हो। लेकिन मुझे इसका गम नहीं है। तुम्हारी यादें हर वक्त मेरे साथ रहती हैं। ख्वाबों के इस फ्रेम में तुम्हारी तस्वीर हर समय मेरे साथ रहती है। मेरी सुबह में आज भी तुम्हारे बदन की महक महसूस होती है। जानती हो...मैंने तुम्हारे लिए क्या-क्या सपने सजाए हैं??? वो आसमान की सैर...वो समुद्र का किनारा...और ठंडी-ठंडी हवाओं के बीच सिर्फ मैं और तुम।
कंधे पर टांगने वाला तुम्हारा वो बटुआ, जिसे तुमने कुछ दिनों पहले ख़रीदा था, बहुत सुन्दर है। तुम सोच रही होगी कि मुझे कैसे पता चला? भूल गईं, तुमने मेरे सपने में आकर जो इसे दिखाया था। बटुए का कत्थई रंग तुम्हारे वस्त्रों से मेल खा रहा था। सच कहूं, इस प्रेम-पर्व पर मुझे तुम्हारी काफी याद आ रही है। काश तुम तेरे पास होतीं...काश तुम मेरे साथ होतीं...काश तुम एक हकीकत होतीं। क्या बात है...तुमने अब सपनों में आना कम कर दिया है? क्यों इतनी नाराज़ हो गई हो? तुम्हें याद है बारिश की वो सुबह...जब तुम्हारे भीगे बदन से लिपटी हुई चुनरी पेड़ की शाखा में अटक गई थी। तब तुम कितनी नाराज़ हुईं थीं। तुम्हारे माथे की वो शिकन मुझे आज भी याद है।
इस प्रेम-पर्व पर तुम्हें देने के लिए मैंने खास उपहार खरीदा है। जब तुम मिलोगी, तब दिखाऊंगा। उम्मीद है कि तुम्हें यह उपहार पसंद आएगा। जब तुम सोकर उठती हो, तो क्या अभी भी तुम्हारी जुल्फें सीने से लिपटी हुई होती हैं? कितनी खुशनसीब हैं ना...तुम्हारी जुल्फें। हां...तुम्हारी जुल्फें। बहुत शरारती हैं। जब तुम चलती हो तो तुम्हारे चेहरे पर आकर अठखेलियां करती हैं। जब तुम खड़ी होती हो तो गर्दन पर लिपट जाती हैं। जब तुम नहाती हो तो बदन से चिपक जाती हैं। तुम्हारी आंखों का काजल आज भी तुम्हारे सौंदर्य में चार-चांद लगाता होगा। तुम्हारा वह सौंदर्य जो कुदरत की देन है।
क्या तुम्हें पता, जब कुछ तितलियों ने तुम्हें चारों ओर से घेर लिया था। ऐसी ही एक तितली आज मेरे पास आई। मुझे कुछ दूरी पर बैठी हुई थी। गुमसुम। ना जाने उसे क्या हुआ था...मैं उससे कुछ पूछना चाहता था...कुछ कहना चाहत था...और हां, तुम्हारे पास एक सन्देश भिजवाना चाहता था। जब मैं उसके पास गया वह उड़ गई। लगता है तुम अब मुस्कुरा रही होगी। मेरे भी चेहरे पर एक मुस्कराहट आ गई है। तुम भी सोच रही होगी कि मैं भी ना जाने इस पत्र में क्या-क्या लिख रहा हूं। बुद्धू, पागल और ना जाने किस-किस नाम से तुम मेरा नाम ले रही होगी। हां...बुद्धू हूं मैं....तुम्हारा बुद्धू... तुम्हारे लिए बुद्धू। मुझे उम्मीद है कि अब तुम्हारी नाराज़गी दूर हो गई होगी। और हां...कोशिश करूंगा कि मैं तुम्हारे लिए पत्र लिखता रहूं। अंत में तुम्हारे लिए एक खास सन्देश, 'मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं। इस प्रेम-पर्व की तुम्हें बहुत-बहुत बधाई।'
तुम्हारा...सिर्फ तुम्हारा...
बुद्धू
5 comments:
बहुत बढ़िया प्रेम-पत्र को बयां किया है आपने....भाई साहब.
waaaaah
yaar mujhe bhi prem patr likhna tha chalo isi bahane ek fprmat to mila,
thnx
jandaar
Nice
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